Saturday, 3 May 2014

दोपहरी


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गरमी की दोपहरी में
तपे हुए नभ के नीचे
काली सड़कें तारकोल की
अंगारे-सी जली पड़ी थीं
छांह जली थी पेड़ों की भी
पत्ते झुलस गए थे
नंगे-नंगे दीघर्काय, कंकालों से वृक्ष खड़े थे
हों अकाल के ज्यों अवतार

एक अकेला तांगा था दूरी पर
कोचवान की काली सी चाबूक के बल पर
वह बढ़ता था
घूम-घूम ज्यों बलखाती थी सर्प सरीखी
बेदर्दी से पड़ती थी दुबले घोड़े की गरम
पीठ पर।
भाग रहा वह तारकोल की जली
अंगीठी के उपर से।

कभी एक ग्रामीण धरे कंधे पर लाठी
सुख-दुख की मोटी सी गठरी
लिए पीठ पर
भारी जूते फटे हुए
जिन में से थी झांक रही गांव की आत्मा
जि़ंदा रहने के कठिन जतन में
पांव बढ़ाए आगे जाता।

घर की खपरैलों के नीचे
चिडि़यां भी दो-चार चोंच खोल
उड़ती छिपती थीं
खुले हुए आंगन में फैली
कड़ी धूप से।

बड़े घरों के श्वान पालतू
बाथरूम में पानी की हल्की ठंड़क में
नयन मूंद कर लेट गए थे।

कोई बाहर नहीं निकलता
सांझ समय तक
थप्पड़ खाने गर्म् हवा के
संध्या की भी चहल-पहल ओढ़े थी
गहरे सूने रंग की चादर
गरमी के मौसम में।

गरमी में प्रात:काल

गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।

जब मन में लाखों बार गया-
आया सुख सपनों का मेला,
जब मैंने घोर प्रतीक्षा के
युग का पल-पल जल-जल झेला,
मिलने के उन दो यामों ने
दिखलाई अपनी परछाईं,
वह दिन ही था बस दिन मुझको
वह बेला थी मुझको बेला;
उड़ती छाया सी वे घड़ि‍याँ
बीतीं कब की लेकिन तब से,
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।

तुमने जिन सुमनों से उस दिन
केशों का रूप सजाया था,
उनका सौरभ तुमसे पहले
मुझसे मिलने को आया था,
बह गंध गई गठबंध करा
तुमसे, उन चंचल घ‍ड़ि‍यों से,
उस सुख से जो उस दिन मेरे
प्राणों के बीच समाया था;
वह गंध उठा जब करती है
दिल बैठ न जाने जाता क्‍यों;
गरमी में प्रात:काल पवन,
प्रिय, ठंडी आहें भरता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।

चितवन जिस ओर गई उसने
मृदों फूलों की वर्षा कर दी,
मादक मुसकानों ने मेरी
गोदी पंखुरियों से भर दी
हाथों में हाथ लिए, आए
अंजली में पुष्‍पों से गुच्‍छे,
जब तुमने मेरी अधरों पर
अधरों की कोमलता धर दी,
कुसुमायुध का शर ही मानो
मेरे अंतर में पैठ गया!
गरमी में प्रात:काल पवन
कलियों को चूम सिहरता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।

गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्‍हारी आती है।