Sunday, 16 February 2014

नीली धारियों वाला स्वेटर

कैसी भी रही हो ठण्ड 
ठिठुरा देने वाली या गुलाबी 
एक ही स्वेटर था मेरे पास 
नीली धारियों वाला 

बहिन के स्वेटर बुनने से पहले
किसी की उतरी हुई जाकेट 
पहनता था मैं 
जाकेट में गर्माहट थी 
पर जाकेट पहन कर 
ख़ुशी नहीं मिलती थी मुझे 
एक उदासी छा जाती थी 
मेरे चेहरे पर 

बहिन मेरे चेहरे पर छाई 
उदासी पढ़ कर 
खुद भी उदास हो जाया करती थी 
बहिन ने थोड़े-थोड़े पैसे बचा कर 
ख़रीदे सफ़ेद नीले ऊन के गोले 
एक सहेली से मांग लाई सलाई 

किसी पत्रिका के बुनाई विशेषांक से 
सीखी बुनाई 
दो उल्टे एक सीधा 
एक उल्टा दो सीधे डाले फंदे 

कई दिनों तक नापती रही 
मेरा गला और लम्बाई 
गिनती रही फंदे 
बदलती रही सलाई

ठिठुराती ठण्ड आने से पहले 
एक दिन बहिन ने 
पहना दिया मुझे नया स्वेटर 
बहिन की ऊंगलियों की ऊष्मा 
समां गई थी स्वेटर में 

मेरे चेहरे पर आई चमक 
देख कर खुश थी बहिन 
मेरा स्वेटर देख कर 
लड़कियाँ पूछती थी 
कलात्मक बुनाई के बारे में 

बहिन के ससुराल जाने बाद भी 
कई वर्षों तक पहनता रहा मैं 
नीली धारिओं वाला स्वेटर 

उस स्वेटर जैसी ऊष्मा 
फिर किसी स्वेटर में नहीं मिली 
उस स्वेटर की स्मृति में 
आज भी ठण्ड नहीं लगती!

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