Friday, 14 February 2014

बारिश और गुलाबी ठंड

बाहर झमाझम बारिश है
फरवरी की गुलाबी ठंड में
मौसम की यह इनायत बेहद मुलायम
पत्तियाँ धुली हुईं 
दिन भर की धूप की थकान से 
अभी अभी गर्भ से बाहर आए 
मेमनों की आँखों-सी 

मिट्टी की सोंधी महक 
तुम्हारी साँसों-सी मादक हो रही 
भीतर खूब भींने की इच्छा चढ़ती रात-सी
जवाँ हो रही इस ढलती शाम में 
कल फूलों में उतरेगी 
अलग ही रंगत, अलग ही खुशबू

अलग ही ताज़गी में नहायी 
खिलखिलाएँगी कलियाँ

उदासी की चादर ओढ़े सोच रहा हूँ
तुम कैसे सोच रही हो इस बारिश के बारे में
या कि एकबारगी भींने उतर पड़ी हो
बारिश में

बाहर बरसती इस बारिश में
भीतर खूब भींगना, खूब रोना चाहता हूँ
मैं भी!

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