Monday, 17 February 2014

नव उमंग नव बसंत!

नव उमंग नव आनंद
नव रंग नव सुगन्ध
आया फिर बसंत

नव चाह नव राह
नव आस नव साँस
लाया फिर बसंत
नव गुंजार नव झंकार
नव वंदन नव गान
गाया फिर बसंत
नव वसुधा नव आकाश
नव प्रभात नव प्रकाश
जगमगाया फिर बसंत
नव तुंग नव कुमकुम
नव जूही नव गुलाब
खिलाया फिर बसंत
नव कांक्षा नव रोमांच
नव संकार नव संकल्प
जगाया फिर बसंत नव
निमंत्रण नव आह्वान
नव प्रसंग नव शृंगार
मुस्कुराया फिर बसंत
नव छंद नव प्रसंग
नव अंदाज़ नव उल्लास
मनाया फिर बसंत
असंग बसंत मंगल बसंत
कंचन बसंत चंचल बसंत
निष्पंक बसंत बसंती बसंत
आया! आया! फिर बसंत!


Sunday, 16 February 2014

नीली धारियों वाला स्वेटर

कैसी भी रही हो ठण्ड 
ठिठुरा देने वाली या गुलाबी 
एक ही स्वेटर था मेरे पास 
नीली धारियों वाला 

बहिन के स्वेटर बुनने से पहले
किसी की उतरी हुई जाकेट 
पहनता था मैं 
जाकेट में गर्माहट थी 
पर जाकेट पहन कर 
ख़ुशी नहीं मिलती थी मुझे 
एक उदासी छा जाती थी 
मेरे चेहरे पर 

बहिन मेरे चेहरे पर छाई 
उदासी पढ़ कर 
खुद भी उदास हो जाया करती थी 
बहिन ने थोड़े-थोड़े पैसे बचा कर 
ख़रीदे सफ़ेद नीले ऊन के गोले 
एक सहेली से मांग लाई सलाई 

किसी पत्रिका के बुनाई विशेषांक से 
सीखी बुनाई 
दो उल्टे एक सीधा 
एक उल्टा दो सीधे डाले फंदे 

कई दिनों तक नापती रही 
मेरा गला और लम्बाई 
गिनती रही फंदे 
बदलती रही सलाई

ठिठुराती ठण्ड आने से पहले 
एक दिन बहिन ने 
पहना दिया मुझे नया स्वेटर 
बहिन की ऊंगलियों की ऊष्मा 
समां गई थी स्वेटर में 

मेरे चेहरे पर आई चमक 
देख कर खुश थी बहिन 
मेरा स्वेटर देख कर 
लड़कियाँ पूछती थी 
कलात्मक बुनाई के बारे में 

बहिन के ससुराल जाने बाद भी 
कई वर्षों तक पहनता रहा मैं 
नीली धारिओं वाला स्वेटर 

उस स्वेटर जैसी ऊष्मा 
फिर किसी स्वेटर में नहीं मिली 
उस स्वेटर की स्मृति में 
आज भी ठण्ड नहीं लगती!

Friday, 14 February 2014

बारिश और गुलाबी ठंड

बाहर झमाझम बारिश है
फरवरी की गुलाबी ठंड में
मौसम की यह इनायत बेहद मुलायम
पत्तियाँ धुली हुईं 
दिन भर की धूप की थकान से 
अभी अभी गर्भ से बाहर आए 
मेमनों की आँखों-सी 

मिट्टी की सोंधी महक 
तुम्हारी साँसों-सी मादक हो रही 
भीतर खूब भींने की इच्छा चढ़ती रात-सी
जवाँ हो रही इस ढलती शाम में 
कल फूलों में उतरेगी 
अलग ही रंगत, अलग ही खुशबू

अलग ही ताज़गी में नहायी 
खिलखिलाएँगी कलियाँ

उदासी की चादर ओढ़े सोच रहा हूँ
तुम कैसे सोच रही हो इस बारिश के बारे में
या कि एकबारगी भींने उतर पड़ी हो
बारिश में

बाहर बरसती इस बारिश में
भीतर खूब भींगना, खूब रोना चाहता हूँ
मैं भी!